टूट जाऊंगा बिखर जाऊंगा
पिता ने बेटे
के नाम खत
लिखा।
पर वो नहीं
लिखा जो
चाहता था
वो लिखना।
मैने वो अब
आप के लिए
लिखा।
"टूट जाऊंगा
बिखर जाऊंगा
तुझसे कुछ
मांगने के पहले
'मैं' मर जाऊंगा।"
"मिल गई
'मंजिल'
जिसे मैं
चाहता था।
हो गया
सपना पूरा,
ऐ,
मन मेरे,
जिसे तूं
चाहता था।"
"समय की
बात है,
अरमान
पूरे हुए।
लड़के
जवान हुए
और
हम बूढ़े हुए।"
"आज फिर
हम दोनो ने
बदल ली है
अपनी जगह।
मैं और
मेरी चाहत
उसके और
उसके फ्रेम से
अब बाहर हुए।"
फिर सोचता हूं
मैं, भी...कभी
ऐसा ही था।
अर्थात....
मै खुद ही
पीछे
दौडा उसके,
जब जब, देखा,
"जीवन" आगे।
पिछला पग
कहां याद
मुझे था,
मन सपनों
संग भागे।
जीवन सांझ
कहां खो जाती,
अरुण क्षितिज
जब चमके,
याद पुरानी
अपनों की अब
हिम नदिया
सी उछ..ले।
जय प्रकाश मिश्र
पर्वती नदियों में ऊंचे नीचे रास्तों के कारण उछाल और वेग बहुत ज्यादा होता है। पर्वत नदी का मार्ग अपनी स्थिति से, कदम कदम पर रोकते हैं अतः टक्कर का निनाद भयावह होता है। नदी मार्ग अवरोध से भीषण गर्जना करती बहती है। वैसे ही वय पूर्ण स्थिति में स्मृतियों का भी वेग तेज बनता है पर इंद्रियों का अवरोध उन्हें रोक देता है। भीतर एक संघर्ष चलता रहता है। अपने समय में हर कोई जग जितना ही चाहता है। वय बंधन हमे दूसरे किनारे पर स्थापित कर देते हैं। जो कर्म से दूर होता है।
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