सहज, शांत, विमल कांति, प्रभु सों आस।
भारतीय साधु का रूप गुण
चैतन्य तत्व,
साधु संपत,
नयनरम्य ताप।
सौम्य, सरल
मृदुल मधुर
सौंदर्य आप।
नेत्र तेज
कलुष रहित
शून्य परिताप।
ऊर्ध्वरेत
अम्बु सरिस
शीतल अभिलाष।
शून्य हृदय
पक्ष रहित
हरत संताप।
निर्मल, निर्दोष
तरल
सच, सौं साथ।
निरलस
प्रफुल्ल तन
मुदित हुलास।
साधना
आराधना
अटल विश्वास।
सहज शांत
विमल कांति
प्रभु सों आस।
जय प्रकाश मिश्र
संक्षिप्त भाव: संत को संसार की सुविधाएं और आंखो को रम्य लगाने वाली चीजे ताप समान होती हैं। वह मुक्त, चैतन्य, जाग्रत भाव का होता है, यही उसकी संपदा होती है। वह सर्वथा अपनी प्रकृति और स्वभाव से ही प्रसन्न रहता है।वह सौम्य, सरल और आंतरिक सौंदर्य जैसे करुणा, प्रेम, शील, सहिश्नु धारण करता है। इसी तरह आगे भी समझें। सत्य ही उसका असली साथी, ईश्वर प्रणिधान में विश्वास रखता है।
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