क्या वही रस चख रहा है जो रसों से दूर है।
सोचता हूं:
कौन है,
संसार को
जो भोगता
हर एक पल है।
सुख,
मान कर है
भरमता,
अमराइयों
की छांह में जो।
या…
विषय कोकिल
बोलती जब
मन में उसके
झूमता
सावन के रस
में भीग कर जो।
या…
बोल मीठे बांधते हैं
मन को जिसके,
बालकों, सुकुमारियों
के मधुर मुख के।
या…
क्या वही
जो रस समाता
तान के उस,
गीत के अवधान से
जो उपजता है।
या…
क्या वही है
वो सयाना
पत्थरों के रंग में
रस ढूंढता जो
विकल रहता।
यदि नहीं तो
क्या वो वह… है,
छोड़ कर घर बार जो
अपना मृदुल परिवार जो
विचरता वन भूमि अंतर
पुलिन गंगा जमुन के तर
मौन चादर ओढ़ कर जो
ध्यान की है धुनि रमाता।
शांत तन और शांत मन ले
दुनियां को खुद में समाता।
मुक्त जो है बंधनों से,
मुक्त जो है स्वजनों से,
मुक्त है जो मुक्तता से
मुक्त है जो आत्मता से।
संयमित जीवन है जिसका
भ्रांति से जो दूर है,
क्या वही रस चख रहा है
जो रसों से दूर है।
पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे। प्रतीक्षा में।
आपका:
जय प्रकाश मिश्र
जीवन भोग में नहीं योग, त्याग, समर्पण, वैराग्य में है। जीवन और समय का स्फुरित आनंद मुक्त व्यक्ति ही पा सकता है। जो विषय बंधनों को ढोता नहीं, बंधता नहीं मात्र तटस्थ रह आनंद सरिता में नित्य प्रति क्षण नवल विशुद्ध स्नान करता रहता है।
Poet has described that tyag is greater than bhog. I agree with poet .bhog has limit but tyagi has no limits as digamber hain muni .whose clothes are four directions.
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