कोई लहरा आ धमकता घेरता जब
1. भावार्थ क्रमवार नीचे लिखा है।
एक दिन, खुद खोजता
बचपन को अपने,🚶
फंस गया वह
उस कंटीली झाड़ से। ☣️
जो खड़ी थी,
आज भी
ठीक वैसे ही, वहीं
छोटे नुकीले,
बदन भर, कांटे लिए, 🪸
उस... पुराने,
पोखरे के,
पार्श्व में।🌫️
2.
वो पुराना पेड़,
पीपल का खड़ा,
पहचानता
कुछ कुछ उसे था,
सो..चता,
संकोच..ता,
पर.. झांकता।🥀
बस.. शी..र्ष पर ही
शे..ष थोड़ी.. पत्तियों की
ओट से।
या.. द में खोया हुआ….
“जब गांव के बच्चे सभी.. थे झूलते
झूला इसी की डालियों की गो..द में।”🎢
3.
चढ़ते.. हुए, सावन के संग संग
बरसती, फुर फुर्र फुहारो बीच में 🎊
सब खेलते चकई, कबड्डी, कंचियों
का खेल मिलजुल,
इसके ही नीचे।
लड़ते, झगड़ते🤼
फिर एक होते।
4.
दौड़ते…,
घोड़ों की टापाें,
को समेटे,
कोई लहरा…, 🫧
आ धमकता
घेरता जब
था.. भिगोता, ☃️
दौड़ कर हम
भागते भगते…
खड़े होते,
इसी की छांव में
तब….।🏖️
5.
तब…,
कितना घना था, 🪴
पत्तियां इसकी,
कभी…
बच्चों के
दिल सी.. 👯
हि.ल.क.ती थीं।
स्पंदनों सी,
थि.र.क.ती थीं,💃
म.च.ल.ती थीं, 👯
उस….
डाल ऊपर।🎋
6.
रंग धानी.. 💚
चमकता था,
कोपलें.. कोमल
थीं…. कितनी।🍃
जाने.. न, कितने रंग के,
तब ‘पर’ छुपे थे,
पंछियों के,
उर में इसके। 💝
7.
‘शांत स्थिर’ पर खड़ा
चुपचाप था यह,
योग करता।😊
हिल रही हों पत्तियां
जल उर्मियों सी तरल कल कल
कितनी मनोहर, चारु सुंदर।🎉
देखता मैं,
कूजनों संग पंछियों ने,
डाल पर डेरा बनाया,
रह गए वो जिंदगी भर,
साथ इसके।💞
पर नहीं
दिल….
कभी डिगता
था अश्वथ का।💥
8.
घुंघुने बन,
बजती ही रहतीं
मंदिरों के नूपुरों सीं
पत्तियां तब जाने कितनी।
कितना मनाती मन से इसको,
कान में तब।🤢
संत था यह,
आज भी मैं पा रहा हूं
संत इसको,
इस उमर में।
ध्यान में जाने न किसके
डूबता यह थिर खड़ा है,
कौन जाने किस समय से।
देखते ही देखते,
लो
एक चिड़िया,
कितनी छोटी
चुलबुली सी 🐤
एक टहनी पर
आ बैठी, 👣
पत्तियां सहला रहीं हैं 🪶
तन को उसके।
ठीक वैसे
जैसे
मेरे नाना ने छुआ था
कभी मुझको,
झुरझुराती, देह.. मेरी जा रही है,
रोमहर्षन हो रहा है मन में मेरे।
डूबता.. मैं जा रहा हूं, धंस.. रहा हूं!
समय सरिता बीच मैं अब तिर.. रहा हूं!
जय प्रकाश
1. जब कभी भी हम पुरानी बचपन की यादों में जाते हैं तो कोई कोई घटना ठीक उसी तरह जीवंत हो स्मृतियों में साकार होने लगती है।
जैसे गांव के बाहर पुराने पोखर के भीटे पर कोई झाड़ी अपने कांटों तब कपड़ों को फंसा लेती थी।
2. गांव में सब बच्चे मिलजुल पेड़ों के नीचे शीतल छाया में अनेकों खेल खेलते थे। अब जब वहां जाते है उन पेड़ों के नीचे पास में तो लगता है वो ध्यान से हमे देख कर पहचानने की कोशिश कर रहे, लजा रहे हैं, उनकी डाले ऊपर हो गईं और कुछ में नाम मात्र की शाखाएं पत्तियां बची हैं।
3. चकई, कबड्डी, कंचे और बहुत सारे खेल पूरे गांव के किशोर इन पेड़ों, बगीचों में खेलते, आपस में झगड़ते और फिर एक हो जाते थे।
4. सिवानों में या आम की बागों में गांव से बाहर सावन जब रुक रुक कर पानी की झड़ी लगा देता या तेज पानी का लहरा घोड़ों की टापों सी आवाज करता दौड़ता आगे बढ़ता धुंधलका भरे खेतों से आता था तो सभी भीगने से बचने पेड़ों के नीचे भागते थे।
5. तब यह सारे पेड़ हरे भरे, घने, फल से भरे होते थे। दलों पर हरी, चिकनी, सुंदर मुलायम पत्तियां बच्चों के मन, हृदय से हवा के साथ हिलदुल करती रहती थी, कितना रसमय, सुंदर अनुभूति होती थी।
6. सुंदर चटकीले पंख, रंग बिरंगे इन पर बैठते और घोंसले बनाए थे। मित्रो और अंतरंग भागीदारी लिए इन पेड़ों के साथ बसते थे।
7. सुंदर पक्षियों के रंगों, सुरीली आवाज, आकर्षक रूप, चिल्हकन, से पेड़ अप्रभावित सन्यासी से चुपचाप खड़े आनंद में मगन लगते थे।
8. एक पेड़ एक मौन सन्यासी ही होता है। वह एक उम्रदराज बूढ़ा होता है, उसने लंबा सफर तय किया है। अपने को योगस्थ हो संभाला है। रोग शोक मुक्त रहा हैं।
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