बगिया के अमवा सी चूई, लड़की जैसी छूई मूई,

 

पहला धोवन गाढ़ा होगा

पीर रहेगी गाढ़ी,

जीवन की कुत्सा झलकेगी

सावन की हरियाली।

अनुभूति वास्तविक होती है, और पहला पहला अनुभव किसी भी संबंधित हो अनूठा होता है, चाहे दुख पीड़ा का हो या आनंद सावन का।

पोर पोर की कोर कोर से

रस छलकेगा तीखा,

असल तमस अरु भूख प्यास 

की कविता होगी मीठा।

वास्तविक आनंद उसी कविता में आ सकेगा जिसका साहचर्य कवि ने स्वयं जिया हो। उसी में पोर पोर से रस आनंद मिलेगा और जीवंतता की अनुभूति होगी

जीवन के बंजर में खोई

बंझूलि की बगिया में सोई,

जेठ दुपहरी तपी हुई सी

माघ पूष से सनी हुई सी,

बगिया के अमवा सी चूई

लड़की जैसी छूई मूई,

थेथरा के थोभड़ा सी खरभर

घूमै जैइसे लइका दिनभर।

जरूरी नहीं विषय कोमल हों,पर वे वास्तविकता के पास होंगे। संभव है कहीं यथार्थ जैसे खुरदरे और नखरे वाले या छोटी बच्ची सी अनछुए हों या त्याज्य विषय ही हों। सत्य परोसना ही कवि का काम है।

वैसई ह्वै निर्दुंद लिखूंगा

कच्ची पक्की सब भर दूंगा।

डरो मती तुम नहीं अकेले

घूमते थे जो तन मन खोले।

बाग बगीचे गली मुहल्ले

निर्भय होकर धूम धड़ल्ले।

पढ़ने वाला और लिखने वाला जब एकभाव में एक लय ताल में आ जाता है तो कविता आनंद की पेंगें मारने लगती है, पराकाष्ठा पकड़ती है।

क्या क्या लिए उम्मीदें मन में

जाने किससे किससे मिलने।

खोह खेत खलिहान बराबर,

बचकाने अरमान बिरादर।

कैसे कैसे कितने कितने,

किनसे किनसे आधे पौने।

शीत घाम कछु असर न करते,

दिवस रात हम घूमा करते।

क्रमशः आगे कल पढ़ें

जीवन मिली जुली घटनाओं, मुक्त स्थितियों, आशाओं से परे, परिणामों से बेखबर जब होता है तो अपने स्वाभाविक प्रवाह में बहता है। सबकुछ अच्छा और प्रायश्चित विहीन होता है। छोटी छोटी बातें, चाहना, करतूते, घटनाएं दिशा और दशा बदल देती हैं। हम प्रकृति के संग अपनी मुक्तता को असाधारण तरीके से जीते थे। बचपन अनुपम, अतुल्य है। 




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