क्यों उडी चिड़िया पके उस खेत से।

क्यों रहे उल्लास की 

यह फ़ाग आधी,

क्यों तड़पता उम्र भर 

वह ही रहे,

क्यों उठे एक हूक 

आती कूक से,

क्यों उडे चिड़िया 

पके उस खेत से।

संसार को उसकी लय गति से समय के साथ जीना ही जीवन है। नकार की भावना स्वभाव को बाधित करती है।

तुम मेरे अधखिले मानस 

पुष्प की मकरंद हो।

तुम मेरी आराधना के

पुष्प का अभिप्राय भी।

तुम मेरे याचित हृदय के 

धारणा प्रतिबिम्ब हो,

तुम मेरी पहचान से बढ़कर 

मेरा हर स्वप्न भी।

मां जगदंबिका, भवानी पार्वती की प्रभु श्री शिव के लिए अन्तर्भाव का वर्णन।

तुम मेरा वह मौन हो।

चुपचाप, जिसकी याद में,

मन तृप्त होता, 

आंख झरती।

निर्झरे आंसू 

लटकते, 

स्मृतियां सुलगतीं। 

रहतीं मन में।

पर्वतराज की पुत्री मां पार्वती का सदाशिव के प्रति प्रेम शाश्वत, निर्मल, एकरस है, शिव के लिए घोर तप उन्होंने किया और उदाहरण प्रस्तुत किया।

झूलती झूले मधुर,

विश्वास भर कर गोद में,

हर नवल पल डूबती हूं,

प्राणभर तेरे सरोवर, 

प्राण हे, तेरे सरोवर।

मां द्वारा शिव प्राप्ति के लिए की गई तपस्या, मधुर भाव मिश्रित, कठिन और प्राणपण से युक्त है।

समय के संग

मौन मेरा वाक्य है, 

दृष्टि मेरी बोलती है,

तन की ये मेरी कृष्यता

वह राज सारे खोलती है।

वह चुपचाप मौन धारण की हैं, व्रत की अधिकता से, जो गिरे हुए पत्तों पर जीवन जी रहीं थी उससे अति कृषकाय हो गईं थी। वह उनकी तपस्या का दृष्टांत है।







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