सूख जाएंगे हरे पत्ते रसीले रस भरे।

समय की सरिता में सब, बह जाएंगे।

सूख.. जाएंगे, 

हरे पत्ते…., 

रसीले.. रस भरे,

रू..प यह 

अप्रतिम.., सुगढ़, 

ढ़ल.. जाएगा।

दह..कते अंगार से 

ये अधर.. तेरे, 

एक दिन

राख के अंबार में 

जाने कहां खो.. जाएंगे।


सजल आंखों में 

मुखर, ये 

कालिमा की रेख् तेरी,

काल के पनघट 

कहीं खामोश ही 

सो जाएगी।


लाल चंदन में मिला

जो स्वर्ण सा है 

वर्ण तेरा,

कालिमा में 

काल की 

मिट 

यह नहीं 

रह जाएगा।


खिलते कमल सम

इस समय की 

नाभि पर जलता हुआ 

यह रूप तेरा,

समय की बहती 

नदी में एक दिन

बह जाएगा।


अमृत भिगाते, 

मुस्कुराते, प्रेम में

आरक्त तेरे ये अधर,

समय के इस दीठ पर

शामो-सुबह

जल जाएंगे।


इतना करुण जो,

हृदय तेरा, तरल है,

इसका

सजल रस 

रसधार सा बहता 

निजल हो जाएँगा।


पंखुरी सी 

महकती 

बिखरती 

ये हंसी तेरी, 

देखते ही देखते

जाने कहाँ खो जाएगी। क्रमशः आगे पढ़ेंगे।

जय प्रकाश






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