सच सुने तो, मैं कुछ कहूं,
सच सुने तो, मैं कुछ कहूं,
कुछ जगहें,
आधुनिकता
के लिए
बंजर होती है।
पर “इच्छाएं”,
तरह तरह की
हां, हां मन की!
यहां भी उठती हैं।
(ग्रामीण परिवेश, अपनी संस्कृतियों और अदबो लिहाज में रहने वाले लोग, उन्मुक्त आधुनिक जीवन जीने वालों के लिए हेय ,नीचे दर्जे के माने जाते हैं, पर इंस्टिंग्ट सब जगह सबमें समान होती हैं)
पर, न पनपती हैं,
न आगे बढ़ती हैं।
हां.. आप सही हैं,
भीतर.. ही भीतर..
कसकती… हैं।
(इन जगहों पर यहां के लोगों में भीतर उन्मुक्तता के प्रति एक कसमसाहट रहती तो है। यहां सामाजिकता, और दायित्वबोध हर क्रियाकलाप पर अंकुश का काम करता है।)
कुछ कुछ
धुप-छाँहीं, सी
बादलों के
घुमड़ने से,
व्यापती तो हैं।
बस पानी की
सीलन!
हां हां, सीलन!
वही नहीं आती।
क्या यहां
हृदय होता....!
अरे हां,
वह होता है।
वही तो होता है,
इन बंजरो में,
निर्मल, स्वच्छ दर्पण सा।
(उम्र और परिस्थितियों से होने वाली इच्छाएं यहां के लोगों में आतीं तो हैं पर उनमें जड़ नहीं होती। आपसी सहयोग, भाईचारे की मिशाल होते हैं, करुणाशील, स्वच्छ हृदय वाले, भेदभाव रहित होते हैं।)
उसी में से तो, जितने गहरे से
ये…… .निकलती हैं,
उससे ज्यादा..(गहरे)
डूब… जाती हैं।
निकल नहीं पातीं।
(इनकी व्यक्तिगत इच्छाएं समय के साथ स्वस्थ हो जाती हैं उन्मुक्त अवैध दिशा नहीं लेती।)
न जाने कितने बंधनों,
उपकारों, स्तरों, संस्कारों,
दायित्वों से बंधी होती हैं
इन बंजरों की कोमल इच्छाएं।
(इन शहरी आधुनिकता से दूर के लोग संबंधों, रिश्तों, पुरानी रीतियों में बंधे होते हैं)
सच सुनो तो, मैं कुछ कहूं,
हर समाज का
प्राण हैं, मूल हैं,
ये सूत्र हैं, जो बांधते हैं
हममें तुममें मनुष्यता
के अति सूक्ष्म तंतु।
(आत्म परिष्कार हमे यह हीनता का मार्ग नहीं स्वस्थ लोक स्वीकृत मार्ग अपनाना है, निर्देशित करता है। बाद के जीवन में यही मानवता का बड़ा आधार बनता है)
अपने भीतर अपनी
उन्मुक्त इच्छाओं से होते
संघर्ष की यह उष्णता
जो तटस्थ हो लड़ी गई,
एक दिन आधार होगी
नींव होगी आपके संभ्रांत
गरिमा पूर्ण जीवन का
और संबल इस बिखरते
विकल स्वार्थी संसार का।
(अपनी कमजोरियों से किया गया अंतः संघर्ष हमें स्थाई स्वस्थ मानसिकता देता है। इसी से संसार में अच्छे कार्य होते हैं।)
समाज को सदा से संरेखित
करती रहीं हैं, केवल और केवल
ये विवेकी इच्छाएं।
(जाग्रत विवेक ही दुनियां के सही मार्ग का नियमन करेगा।
जय प्रकाश
Comments
Post a Comment