मत सिल मेरी तकलीफें, पैबंद पुराना है।
मत सिल मेरी तकलीफें
यह....
पैबंद पुराना है।
सिलवन की ये तुरपाई
अब
स्तर नही सह सकता।
(कुछ लोगो की स्थिति इतनी कमजोर और समस्याग्रस्त होती है की उनको एक तरफ से ठीक करो तो दूसरी तैयार हो जाती है, उनको कुछ दो तो रखने की जगह और प्रयोग किए जाने का सही तरीका नहीं आता, उनकी नियति ही दुर्दशा है)
छिल जाती हों जब रूहें
बरजोर निगाहों से,
बाज आओ मत देखो
इस नंगी कहानी को।
(लोग अपनी लाज को अपनी इज्जत के प्रति संवेदनशील होते हैं, हमे किसी की दयनीय स्थिति का गलत फायदा नहीं उठाना चाहिए।)
दुख दुख से सिला जाता
तो बात कोई होती,
मत सिल मेरे जख्मों को
उन रेशमी धागों से।
(सामाजिक असमानता बढ़ रही है, कभी किसी गरीब, दुखी के यहां दिखाने को, फोटो खिंचाने को, वोट की खातिर बड़े बड़े राष्ट्रीय नेता पहुंच जाते है वह जले पर नमक ही है, दुखी का दुख ऐसे नहीं कम होगा, जख्म पर कॉटन रखी जाती है न की दिखावट के लिए रेशमी कपड़ा)
हद होती तो ये नदियां
तालाब नहीं होतीं।
मछुआरों की बस्ती से
किलकारी कोई उठती।
(अगर नेता, अधिकारी, जिम्मेदार लोग अपनी हदों में रहते, भ्रष्ट, बेईमान न होते तो गरीबों, और मध्यम वर्ग के भी घरों में खुशियों की चमक या किलकारी होती। इन गंदे लोगों ने बहती समृद्धि नदी को सुखाकर तालाब बना दिया)
ये राह जो सूनी है
कुछ किस्से सुनाती है,
सुन सकता है बस वो ही
दिल जिसका हो पाकीजा ।
(जो परेशान हाल हैं उनकी ये हालत हमारी खस्ताहाल व्यवस्था की मिसाल हैं, पर जब हम तटस्थ हो निरपेक्ष बन इसे अनुभव करेंगे तो ही सच्चाई मालूम होगी।)
कुछ कह तो, सुनूंगा मैं
आंखों से, ही, तुम बोलो,
क्यूं डरता है तू इतना
कमबख्त दीवारों से।
(आज कल लोग अपना फैसला मन में लेते है, आंखों से इशारों में आपस में बात कर लेते हैं। अनेक लोग निश्चित ही अपनी राय अनजान डर ही हो बताना नहीं चाहते।)
अब कान नहीं सुनते,
आंखें हैं निशा खाली,
ये नेता हैं सब अपने
पाज़ामों की गिरबन में।
( अधिकांश राजनीतिक लोग अपना और अपने लिए सक्रिय कार्य कर्ताओं का ही भला नहीं कर पा रहे, पार्टी सत्ता में कैसे बनी रहे या आए, इस सोच में ही लगे रहते हैं। यद्यपि जनता की आंखों में निराशा है।पर धैर्य रखना होगा।)
आंखें तेरी भर आईं
बेटी को देख अपने,
मत रो, खुदा खुद ही
कुछ बात बढ़ाएगा।
(आज समाज में एक गरीब की आमदनी और उसकी पारिवारिक समस्याएं बड़ी होती बेटियो की चिंता सब्र को हिला देती हैं। ईश्वर पर विश्वास ही उसे एक एक दिन बांधे रहता है। )
कुछ है यहां दुनियां में
अंधियारा नही सबकुछ,
तूँ नेह लगाए रख
जब बूंदें बनें मोती।
(आशावादी होना चाहिए, मिलकर ही हम कठिनतम समस्या को खत्म कर पाएंगे, संकल्प और सतत कार्य सम्पादन से निश्चित सिद्धि एक दिन मिलेगी)
बदली नही तेरी किस्मत
जब रातें हुईं उजली,
दिन खाक उजाला है
जब तेरी गली सूनी।
(उन्नति के मापदंड सूचकांक आदि बढ़ते रहे है, पर आम नागरिक को सहुलियत नहीं तो सब व्यर्थ, यथार्थ में जीवनयापन की समस्याएं और सामाजिक नैतिकता आज भी निचले स्तर पर ही है।)
जय प्रकाश
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