नए आ गए हैं आंकुरे, महूए में देखा आज

आज यह पूरी कविता पढ़ें।

छनती रही है जिंदगी 

रिश्तों के बीच रोज,

बाकी बची है जिंदगी 

रिश्तों के बीच आज।

(स्वार्थ और आगे बढ़ने की चाह में अपनो को छोड़ दुनियां में खुशियां ढूंढते रहे लोग आखिर में अपने ही लोगों, रिश्तो में जीवन बिताने, साथ खोजते घूमते हैं।)

जाने कहां गई वो फिजां, 

जो बदलती थी रोज।

एक कारवां गुजरा था

धूल उड़ रही है आज।

(रोज नए अफसाने नए उत्सव थे, शानदार जिंदगी थी, अपरार्ध तक, पर अब जीवन के पश्चिमोत्तर भाग में उनकी यादें ही शेष बचीं रह जाती हैं।)

खुश होने को तो दीखते हैं 

नन्हें नन्हें पेट, (घरों में पलने वाले छोटे जानवर)

खूब पा रहे हैं आबो अदब 

नवदंपति में आज।

(आजकल फैशन है नव-दंपति शौक से पालतू, बिल्ली, खरगोश, पप्पी आदि अद्भुत प्रेम प्रदर्शित करते हुए पालते हैं)

कूदते हैं, उछलते, 

मन मोहते हैं सच। 

पर बच्चों से खाली हो रही 

है जिंदगी तो आज। 

( Pets से प्रेम अच्छा है पर आज परिवारों में बच्चों की जगह पालतू पेट्स ले ले रहे हैं। छोटे बच्चे बहुत कम होते जा रहे हैं।)

फिर उलझ गयी है जिंदगी

सच सुलझने के बाद,

नए आ गए हैं आंकुरे, 

महूए में देखा आज।

मैं छक चुका था कंठ तक 

बाकी नहीं था कुछ,

ये क्या हुआ कि चिड़िया बोली 

दिन डूबने के बाद।

(अपने बच्चों के बड़ा हो जाने और जिम्मेवारी पूरी होने के बाद फिर एक बार बच्चो के बच्चों की उम्मीद में मन आशा और निराशा के बीच पुनः झूला झूलता है, दादा दादी फिर पुराने अंदाज में प्रसन्न देखे जाते हैं।)

तार तार हो के मैं जिया

जिनके लिए कभी,

तार तार किए जा रहे 

वो, जिंदगी को आज।

घर के बड़े बूढ़े अपने बच्चों के भविष्य के लिए अपनी सुविधाएं त्याग दीं वे ही आज उन त्याग तपस्या को कोई महत्व नहीं दे रहे।

जय प्रकाश 

Comments

Popular posts from this blog

मेरी, छोटी… सी, बेटी बड़ी हो गई.. जब वो.. पर्दे से

एक नदी थी ’सिंधु’ बहने सात थीं

वह सूरज है, अस्त होता है, मर्यादा से नीचे नहीं गिरता