संपूर्णता में सब जिएं
हे विकल धीवर,
समेटो.....
जाल को.... ऐसे नहीं।
हम सरीसृप क्षीण हों पर
जान तो हममें भी है।
भार से तेरा भला होगा
ये सच, हम जानते हैं,
प्राण का सममूल्य मानव
भी कहां रख पाया है।
बड़े लोग छोटों को समुचित मानव का सम्मान भी प्रायः नहीं देते, उनमें जो एक व्यक्ति का मूल जागृत अंश है चेतना उसकी अनदेखी कर देते हैं।
मूक है, अज्यानि हैं हम
हो तुम्हीं ईश्वर मेरे।
तुम कला में श्रेष्ठ हो
हम सदा पीछे तेरे।
तुम जुड़ो संवेदना से,
अभिराम तेरा आत्म हो।
नीचे की सीढ़ी पर खड़ा आदमी अपनी स्थिति से हमेशा वाकिफ रहता है, वह पूरी ईमानदारी और गहराई से हमारी संवेदना को महसूस करता है। विकसित लोगों से उसे बहुत सी उम्मीदें रहती हैं।
छोड़ दो जीवन कलुष तुम
हम मुक्त हो, हम जी सकें।
‘जीवन कलश’ जल से भरो,
‘दीपक जलाओ’ शीर्ष पर,
संपूर्णता में सब जिएं
जो हो जहां संसार में।
शीर्ष के लोग यदि अच्छे से रहे तो विश्व में सुख शांति दूर नहीं। जीवन को जल-कलश सा स्थिर, शांत, समृद्धिवान, शीतल, धन धान्य युक्त, ज्ञान और प्रकाश से पूर्ण होना चाहिए। सभी मानव मानवता के लिए काम करें तो हर कोई सुखी होगा।
जय प्रकाश
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