गिराे , तो वहां, झरता हो झरना, जहां।
रुको, सोचो जरा:
उन डबडबाई आंखों में
पानी की गहराई ही
कितनी… थी,
पर सच कहूं, तो
यार ! ह…म
बस... डूब... ही गए।
जीवन में हम अपनी तरल संवेदना के क्षणों में अचानक सामान्य से किरदारों में उलझ ‘अदृश्य अटूट पाश’ में बंध जाते है।
मुझे डूबता देख,
आस पास के किनारे
बेबस से दिखे,
दूर ही रहे।
कनखियों से देखते,
कुछ सोचते से लगे।
स्मृतियों में खोए,
आंखों से मुस्कुराए।
होता है, सभी को
कभी ना कभी,
‘कुछ ऐसे ही मुंह बनाए’।
इस संसार में निजत्व के मामले में आप अकेले ही निर्णय लेते हैं। लोग दूर से देखते मात्र हैं, जानते हैं कि उनका असर आप पर नहीं के बराबर होगा, अपनी स्थिति जो उनके साथ भी घटी थी यह सोच कर मुस्कुराते भर रहते हैं।
मैं अपने में ही गुम था,
पानी खारा था पर
कुछ ज्यादा ही नम था।
आभा सतरंगी अभी बाकी थी।
चेहरे पर एक नई झांकी थी।
तैरना अच्छा लगता है,
भार थोड़ा कम लगता है।
विवेक जागता तो है,
पर चुक जाने पर।
बाद में तो सभी ज्ञान बताते हैं, पर तब गलतियां कर कर पछताया भी करते है।
बीतते गए, दिन
और एक दिन किनारों ने कहा,
'तुम कुछ अलग लगते हो'।
निकल सको तो निकल जाओ।
मन तो था, पर
जब जब निकलना चाहा,
फिसलता ही रहा।
एक बार दुश्चक्र में आ जाने के बाद निकलना मुश्किल होता है, अतः सोच समझ कर आगे बढ़ें।
मन कहीं, तन कहीं, बेजार!
क्या... जीना था।
तालाब तो मछलियो का था,
पर कीचड़ भरा सा लगा।
सूख ही गया, समय से पहले।
अनजान बना घूमता हूं अब,
और कहता हूं, "नदी को चुनो"।
जीवन में सतरंगी छटा अच्छी लगती है पर हमे स्वस्थ मस्तिष्क से संयम से जीना चाहिए। अन्यथा पछतावा ही बचता है।
रंग कैसा भी हो, बहाव में बहो।
पानी जीवन है, बहना भी जीवन है।
जीवन को चुनो, प्रवाह चुनो।
कहता तो हूं, कैसे कहूं,
सुनो! सुनो ! सुनो!
बचो, मत गिरो,
गिराे भी तो वहां,
झरता हो, झरना, जहां।
हरियाली हो, उत्सव हो, जीवन हो।
जीवन में जीवन से मिलो।
जय प्रकाश
सदैव जीवन, प्रकाश, उम्मीद, ऊर्जा और प्रगति को चुने।
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