पावस संग, घिर आये मेघ,

सावनी फुहार

पावस संग, घिर आये मेघ,

विकल बदरिया 

इत उत डोळे

मन भरमत चहुंओर।

सावनी फुहार सभी को तन मन में तरंगित कर उतावला बना लेती है

सघन घना, यह तिमिर सलोना

बुंद बुंद बरसावें नेह।

गरजत बरजत 

चलत बदरवा,

जिय डरपत सच मोर।

काली काली बदली जब आकाश को अपने भुजवल्लरी में भर लेती है, उस समय उसकी गरज और फुलझड़ी सी बारिश सबको किसी दूसरे दुनियां में पहुंचा देती हैं।

परत फुहार सखी 

जब तन पर

लागय छुअत सनेह।

भीजन लाग अंग जब भीतर

भरि आवै नयन सखि मोर।

सरकति बूंद कपोल छुअति जब 

मगन होते मन मोर।

जब फुहास सी ऊपर पड़ती हैं तो लगता है कोई स्नेह अंगुलि स्पर्श कर रहा है। मन तरल हो द्रविभूत हो उठता है। तनों पर ढलकती बूंदे अलग ही अनुभूति देती हैं।

ऐसी बीन बजावइ बरखा

नागिन-मन नाचइ मोर।

चित मोरा अस परवश होइगा

सुधि बुधि बिसरी मोहिं।

बारिशे लोगो को आत्मविस्मृत कर आत्मभूत कर लेती हैं।

श्याम सुंदर की ऐसी मूरति

कहि न सकहुं सखि तोहि।

श्री राधा की चमक प्राण सी 

जीवन दयि गई मोहि।

काले मेघ, "श्याम सुंदर" से लगते हैं और उसमे चमकती बिजुरी "श्रीराधा जी" सी लगती हैं। ऐसा लगता है कि श्री राधाकृष्ण जग को अपने "श्री" से आह्लादित कर रहे हैं।यह दर्शन भक्तों को नवजीवन प्रदान करता है।

जय प्रकाश





 

Comments

Popular posts from this blog

मेरी, छोटी… सी, बेटी बड़ी हो गई.. जब वो.. पर्दे से

एक नदी थी ’सिंधु’ बहने सात थीं

वह सूरज है, अस्त होता है, मर्यादा से नीचे नहीं गिरता