जीवन निशीथ

जीवन निशीथ

शांति यहां है, 

नहीं कशमकश, 

सब कुछ सरल सरल है,

जीवन कितना 

स्निग्ध, विमल है, 

सब कुछ तरल तरल है।


सुखद बयार, 

भावना बहती 

तरु पल्लव के उर में,

उपरत मन 

भटकाव मुक्त है, 

मुक्त सभी भटकन से।


विषय विकार 

स्वयं नत रहकर, 

आतुरता धुलते हैं,

श्रम सीकर 

अब अर्थहीन हैं, 

प्रभु संग संग बसते हैं। 


जीवन मंत्र 

कर्म था जग में, 

कर्म भेद अब जाना,

शून्य हृदय, 

मन शून्य, 

शून्य कर 

अन्तस है ये पाया।


कर्म शून्य थे, 

शून्य प्राप्तियां, 

मन की गति फेनिल थी,

अंधी दौड़ 

मैं दौड़ा जग में, 

दौड़ मेरी मुझ तक थी। 


आज पहुंच पाया हूं 

खुद तक, 

वर्ष लगे हैं कितने,

पथ की 

कितनी कठिन परीक्षा 

होती है इस जग में।


जीवन का गंतव्य 

शांति है, 

मर्म हाय अब पाया,

इच्छाएं केवल ईंधन थीं 

ज्ञान हाय अब आया।


कर्तव्यों की 

बलि चढ़ देखा, 

कुछ भी नहीं वहां था,

मुक्त हृदय ही 

सब कुछ था, 

सारा आनंद यहां था।

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