बच्चों से खाली हो रही है जिंदगी तो आज।

कहानी दरिया-ए-जिंदगी 

छनती रही थी जिंदगी 

रिश्तों के बीच रोज,

बाकी बची है जिंदगी 

रिश्तों के बीच आज।

(अपनो को छोड़ पराए में खुशियां ढूंढते रहते थे आखिर अब अपने ही साथ बचे)

जाने कहां गई वो फिजां, 

जो बदलती थी रोज।

जो कारवां गुजरा था तब

वो धूल उड़ रही है आज।

(रोज नए अफसाने उत्सव था शानदार जिंदगी थी, आज उनकी यादें ही बचीं हैं)

खुश होने को तो दीखते हैं 

नन्हें नन्हें पेट, (पालतू जानवर)

खूब पा रहे हैं आबो अदब 

नवदंपतियों में आज।

(पालतू, बिल्ली, खरगोश, पप्पी आदि अद्भुत प्रेम से नए जोड़े पालते हैं)

उछलते हैं, कूदते हैं, 

मन मोहते हैं सच। 

पर बच्चों से खाली हो रही 

है जिंदगी तो आज। 

(आज परिवारों में बच्चों की जगह पालतू पेट्स ले रहे हैं छोटे बच्चेकम होते जा रहे)

अपनी कमेंट अवश्य दें।

जय प्रकाश



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