चाहे जहां खिलो फूल से

 मातृ भूमि 

भूल गए हम मिट्टी से ही

निकला पुष्प सलोना,

स्वच्छ धवल जितना भी हो

पर मिट्टी का है छौना।


रूप रंग आकार स्निग्धता

कैसी इसकी आभा,

भर सुगंध हिलता समीर संग

सबका मन है बांधा।



दिखता कितना अलग थलग है

यह अपनी मिट्टी से,

दूर खड़ा हो डाल शिखर पर

इठलाता मस्ती से।


पा कलियन का संग बिहंसता

अपनी ही दुनियां में,

पर मां बन कर जीवन देती

मिट्टी ही बगिया में।


हे जन भारत भूल न जाना

अपनी मां धरती है,

चाहे जहां खिलो फूल से

महको, पर मां भारती ही है।

जय प्रकाश









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