खिलती हंसी फिसल पड़ती थी
आमंत्रण निजता तक था
जो भी था, जैसा भी था,
पर आमंत्रण निजता तक था।
कौन बचेगा क्यों कर इनसे
आलिंगन सपनो सा था।
(श्री राधाकृष्ण का स्वरूप आपको अपने में आत्मसात कर विस्मृत कर लेता है)
हाय! निमंत्रण झर झर झरता,
नयन झुके जाते थे।
पवन पकड़ जब डालें झुकता,
फल टुपुक टुपुक गिर जाते थे।
(श्री राधेकृष्ण विग्रह दर्शन से अपने भीतर प्रेम उपजाता है, अंतर में मिठास का पुट मिलता है )
अंगुलियां सुधि बुधि बन बुनती,
सपनों की सुंदर चादर।
सुबह सबेरे चूं चूं करते उड़ते थे,
चिड़ियों के पर।
(श्री श्यामा की सुंदर अंगुलियों में आनंद की अद्भुत अनुभूति मिलती है, और खुद को एक हल्कापन महसूस होता है)
अरुणोदय की प्रथम किरण से
स्वर्ण पुता जाता था,
नन्ही कलियां विहंस मुरकतीं
हृद-स्थल खुल जाता था,
(प्रातः काल में किरणों से कली पुष्प बन खिलने लगती हैं, सूर्य किरणे मंदिरों को सुनहले रंग से रंग देती हैं)
खिलती हंसी फिसल पड़ती थी,
रस अधर मधुर टपकाते थे।
स्वी..कृति मौन बनी प्रस्तुत थी,
हर अंग झुके जाते थे।
(श्री राधे मुख सौंदर्य से मुस्कान छलक जाती थी होठों से अमृत टपकता है )
सलिल सरिस लय विलय उर्मियां
मन आंगन बिछलातीं थी,
तरल तरल स्पर्श हृदय को नयन
नमित दे जाती थीं।
(श्री राधाकृष्ण विग्रह मूर्ति से शांत जल सरोवर सी मृदुल लहरियां निहसृत निकलती रहती और दर्शनार्थी को अपनी करुणा में सराबोर कर देती थीं)
कर, छू राधे, बंसी जब बजती,
श्याम सहज मुस्काते थे।
राधा मुख सुख वंशी जब पाती,
विकल श्याम नच जाते थे।
(श्री राधाजी के स्पर्श मात्र से श्याम वंशी बोल उठती थी प्रभु मुस्कुरा देते, पर जब वह राधा अधर रस छू कर बजती तो प्रभु आनंद बिह्वल हो नाचने लगते)
जय प्रकाश
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