न चमक चाहिए, न भीड़, न उत्तेजना,

जो शिखर बन वह चमकता है,

है दिख रहा, दूर.. से, आंखों को,

आपको अपने भीतर तक...।


वह पहले आप के जैसे..

ही लोगो के पैरों.. के 

नीचे… था। 

सच कहता हूं,

सुनें.., वह जो हमें 

दिखता है, राज मुकुट में भी. 

सबसे… ऊपर, चमचमाता मुस्कुराता..

हीरा.., वह तो पहले पैरों की 

जमीं के भी.. नीचे… था,

उसे खोद कर.. ही

निकाला गया,

था जमीन से।

इसलिए..

अपनी, 

आज की 

स्थिति से परेशान 

मत हो, यह तो नियति 

का नियम है, आप 

सब्र रखें, बस 

परिश्रम

करें।

ध्यान रहे 

हाथों से,

टटोलने वाले को,

आंखों की जरूरत नहीं होती।

आप आंखों के लिए चमकदार नहीं है

कोई बात नहीं,अनुभवी हाथों के लिए 

दानेदार तो हैं।

भरोसा रखें, पहले खुदपर 

फिर अपने ऊपर वाले पर, 

सब ठीक होगा।

हीरा, हीरा ही 

रहेगा, जहां 

भी रहे। 

लोगों के बीच, 

लोगों से दूर, बीहड़ों में 

नीचे जमीं में, अंधकार में, प्रकाश में।

क्योंकि उसे कुछ चाहिए नहीं 

लौटा देता है, वह सबकुछ जो

कुछ भी हम उस पर डालते है।

उसे खुद के

लिए 

न चमक 

चाहिए, न भीड़, 

न उत्तेजना, क्योंकि वह

अपने में पूरा है, संतुष्ट, हृष्ट पुष्ट।

अपेक्षाएं लोगों को होती है चमक की 

हीरे में, सोने में, मणि रत्नों में, पर

ये सभी, ये सभी अपने भीतर संजोए 

सब कुछ प्रशांत, अडिग, अविकारी

पड़े रहते है, एक ही तरह

अपनी मंजूषा में 

अंगो पर, 

अंधेरे में,

या 

जमीं में 

चुपचाप।

संसार के प्रति 

इनमे एक आत्मबोध होता है

जो इन्हें चित-शांति और प्रबोध देता है।

आप अपने में पूर्ण रहें, सोच से, संतुष्टि से,

आत्म ज्ञान से, दुनियां की नश्वरता से।

जय प्रकाश मिश्र





Comments

Popular posts from this blog

मेरी, छोटी… सी, बेटी बड़ी हो गई.. जब वो.. पर्दे से

एक नदी थी ’सिंधु’ बहने सात थीं

वह सूरज है, अस्त होता है, मर्यादा से नीचे नहीं गिरता