मेरे तो पंख घायल हैं।
मेरे तो पंख घायल हैं
ऐ रस जरा धीमा बरस
कोई भीग जाता है,
तेरे आंचल के रंगो-आब पर
कोई रीझ जाता है।
कहूं क्या बात उनकी झर रहा
मधुमास अंग अंग से,
वो हिलते हैं तो गिरतीं है
नजर नापाक अंग अंग पे।
नयन खुद ही परेशां हैं
रुके तो किस पे वो ठहरे
जो पत्थर पर भी वो ठहरे
तो पत्थर सुर्ख होता है।
छुओ मत पांव मेरा तुम
नहीं मैं सख्स वो हूं अब
उडा था जो कभी आकाश
मेरे तो पंख घायल हैं।
क्रमशः आगे कल पढ़ें
Comments
Post a Comment