प्रेम गीतों से भरा मेरे गांव का परिवेश था

प्रेम गीतों से भरा मेरे गांव का परिवेश था।

एक छोटा घर मेरा था 

दूर बस तुम सोच लो,

क्षितिज के ही पास जानो

मिलता जहां आकाश हो। 


पवन बहती थी सुरीली,

मधुमास आहट जोहता,

किलकते पंछी मधुर थे,

तन मन में सावन बरसता।


वहां नदिया बह रही थी,

“काल” से बेफ्रिक हो,

शांत, शीतल, सहज, सुंदर

अन-मनी, अनभिज्ञ हो।


कोई जटाधारी वहां 

कुछ काल से था रह रहा,

“काल “ को नित बांधता और

“काल” से कुछ मांगता।


बांस के झुरमुट वहां

प्रतिपल पवन संग झूमते,

पर खड़ा मानुष वहीं

खुद से लडाई लड़ रहा।


खिल उठे थे फूल पीले 

बालियां पोषित हुईं,

बावला मानव दुखित

दुश्वारियों में ही रहा।


लालिमा के संग सूरज

आसमां पर छा चुका।

दूर थी अब रात काली

फिर भी उसी से डर रहा।


उगलती दिन रात सोना 

ऐसी धरा चहुंओर थी,

दिव्य हरियाली चतुर्दिक 

चांदनी, चित चोर थी।


शांत नीरव क्षेत्र था 

परिमल बसा हर ओर था,

प्रेम गीतों से भरा

मेरे गांव का परिवेश था।


एक छोटा घर मेरा था 

दूर बस तुम सोच लो,

क्षितिज के ही पास जानो

मिलता जहां आकाश हो। 


पवन बहती थी सुरीली,

मधुमास आहट जोहता,

किलकते पंछी मधुर थे,

तन मन में सावन बरसता।


वहां नदिया बह रही थी,

“काल” से बेफ्रिक हो,

शांत, शीतल, सहज, सुंदर

अन-मनी, अनभिज्ञ हो।


कोई जटाधारी वहां 

कुछ काल से था रह रहा,

“काल “ को नित बांधता और

“काल” से कुछ मांगता।


बांस के झुरमुट वहां

प्रतिपल पवन संग झूमते,

पर खड़ा मानुष वहीं

खुद से लडाई लड़ रहा।


खिल उठे थे फूल पीले 

बालियां पोषित हुईं ,

बावला मानव दुखित

दुश्वारियों में फिर रहा।


लालिमा के संग सूरज

आसमां पर छा चुका।

दूर थी अब रात फिर भी 

अंधेरे से ही वो डर रहा।


उगलती दिन रात सोना 

ऐसी धरा चहुंओर थी,

दिव्य हरियाली चतुर्दिक 

चांदनी, चित चोर थी।


शांत नीरव क्षेत्र था 

परिमल बसा हर ओर था,

प्रेम गीतों से भरा

मेरे गांव का परिवेश था।








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