पाईं बेगमे, गमगीन…, नाम में, क्या है,
एक हो जाएंगे पराए अपने
खोल कर देख तो
दरवाजा अपने
बंद कमरे का,
हवा ताज़ी है,
मौसम, खुशनुमा
बाहर है कितना।
गुनगुनी धूप है,
कलियां खिली हैं
पेड़ो ऊपर,
चुलबुली चिड़िया
बैठी है एक
तेरे अंदर।
कमरा हो या
दिमाग बिल्कुल
बंद नहीं होता,
जागने वाला
कभी कुछ भी
कहीं नहीं खोता।
दरवाजे, खिड़कियां
रोशनदान, दीवार,
मान्यताएं, संस्कृतियां,
चलन, विचार।
आपस में जुड़ते हैं,
संजोने के लिए,
पाने के लिए,
न की,
खोने के लिए।
जो हों बेहतरीन,
पर बिखरे बिखरे,
कदर कर उनकी,
जो अभी नहीं निखरे।
पाईं बेगमे, गमगीन…,
नाम में, क्या है,
इरादा नेक हो
तो देख,
नेकी में क्या है।
समा जाएगी,
इतनी बड़ी दुनियां,
तुझमें,
देखते ही देखते,
इतना ही नहीं
एक हो जाएंगे,
सारे.. पराए, अपने।
जय प्रकाश
Comments
Post a Comment