अभय वन वासी को, भय विनाशी को
अभय वन वासी को, भय विनाशी को।
कुछ ‘थान’ होते हैं, देखने में स्थानो ही जैसे ,
गऊ थन से आह्लादक, स्वादिष्ट, पोषण भरे।
कामनाएं बौनी हो, झुकती यहां हैं पूर्ण होकर,
शीश झुकते हैं, खुशी से पावों में नीचे उनके।
बना, न बना हो, कुछ भी यहां,
पूर्ण मनोरथा ही रहती हैं,
विशिष्टता जो भी हो इनकी,
लोक में सदा जिंदा रहती हैं।
हम अपने, अपनों और अपने
लोगों तक सीमित रहते हैं,
ज्यादा से ज्यादा प्रतिष्ठा और
रूप को हर ओर रंग...ते हैं।
इनका इनका जीवन हमारे
आदर्शों से बहुत ऊपर था,
मित्र तो मित्र था, शत्रु भी
मित्र से कम प्रिय नहीं था।
सबके लिए पहले सोचते,
तब अगला कदम रखते थे,
हां! वे बस सच्ची मानवता
मात्र के लिए ही लड़ते थे।
श्री अयोध्याजी और उनके
पालक शुरू से विशिष्ट रहे हैं,
हमारी सामान्य दुनियां और
उसकी सोच से ऊपर रहे हैं।
इस जन्म स्थान ने
प्राण दिया है
रक्षा की है,
संपूर्ण पृथ्वी पर,
मनुष्यता की,
त्राण दिया है मनुष्य को,
जीवन प्रकृति को,
अभय वन वासी को,
भय विनाशी को।
बोलो श्री राम जन्म भूमि की जय।
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