आदिशक्ति रूपा मां वंदना
वह पूर्ण थीं। संपूर्ण थीं। थी मरुधरा, रसवती उनसे। सौंदर्य, सौष्ठव अंग के प्रत्यंग के थे, भाषते सुषुमा सरोवर। म्यान के तलवार सी "नजरें" चमकतीं नेत्र में थीं। कनक मिश्रित रक्त चंदन, वर्ण चमचम चमकता था। सुकुमारिता संग श्री...., शील, लज्जा घेरे हुए चहुंओर थीं। कौमार्य ले छतरी खडी, पग पग थी पीछे भागती। द्युति अरुण का रंग लेकर बाल विधु के संग सुंदर ले छटा अनुपम मनोहर गात पर बरसा रहा था। हाथ जोड़े, योग योगेश्वर खड़े थे। नीचे किए निज माथ देव देवेश्वर झुके थे। सिद्धि थीं संकल्प की वह सरल हृदया भगवती थीं। मां थीं वह माताओं की मां, वह पार्वती थीं, पर्वत की पुत्री। सर्वस्व की वह धारिणी थीं। Jai prakash mishra भावार्थ: वसंत में शिवरात्रि पर्व आनंद शिव (आत्म रूप चेतना) व नवोदात्त मुखरित होती प्रकृति पार्वती के मिलन का है। इसमें अग्निमय-त्रिनेत्री, बाह्य रूप से भस्म मंडित, रजता विहीन, अक्रियता की शून्य स्थिति संप्राप्त, सांसारिक विरक्ति पूर्ण शिव को माधुरी प्रकृति जीत लेत...